देहरादून। उत्तराखंड की रजत जयंती पर प्रदेश की दुर्दशा को लेकर तत्कालीन कुमाऊँ विश्व विद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष व पूर्व दर्जा राज्य मंत्री डॉ. गणेश उपाध्याय ने सरकार, जनप्रतिनिधियों और नौकरशाही पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि 25 वर्षों में उत्तराखंड ने आर्थिक आकार तो बढ़ाया, लेकिन समावेशी विकास, रोज़गार सृजन, कृषि भूमि विकास और स्थायी मानव विकास के क्षेत्र में करारी असफलता झेली है।
उत्तराखण्ड आंदोलन कारी डॉ. उपाध्याय ने कहा कि “विकास के दावे सिर्फ़ शीर्ष पर चमक रहे हैं, जबकि धरातल पर अवैध खनन, भ्रष्टाचार, घोटाले, जमीनों की बंदरबांट, बंजर खेत, अवैध कॉलोनियाँ और 1 लाख करोड़ का कर्ज़ है।” उन्होंने कहा कि प्रदेश में बेरोज़गारी, पलायन, नशा, महिला अपराध और बदहाल स्वास्थ्य एवं शिक्षा व्यवस्था आम हो चुकी है।
उन्होंने बताया कि राज्य के 4,800 से अधिक गाँव “घोस्ट विलेज” बन चुके हैं। सरकारों ने देवभूमि को एनएच-74 घोटाला, भर्ती घोटाला, ढैंचा बीज घोटाला और कुंभ घोटाला दिए, जिनकी जांच केवल खानापूर्ति बनकर रह गई।
स्वास्थ्य सेवाओं पर कटाक्ष करते हुए डॉ. उपाध्याय ने कहा कि अस्पतालों में दवाइयाँ नहीं, एम्बुलेंस नहीं, फिर भी भाजपा सरकार ‘स्वस्थ उत्तराखंड, समृद्ध उत्तराखंड’ के नारे से संतुष्ट है। उन्होंने बताया कि गर्भवती महिलाओं को आज भी 15–20 किलोमीटर पैदल चलकर स्वास्थ्य केंद्र पहुँचना पड़ता है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
उन्होंने कहा कि अव्यवस्थित निर्माण और नदियों पर बढ़ते दबाव ने देवभूमि को आपदा भूमि बना दिया है। राज्य का ऋण अनुपात अब 26.5% से अधिक हो गया है — यानी राज्य जितना उत्पादन करता है, उसका एक चौथाई हिस्सा सिर्फ़ कर्ज़ चुकाने में चला जाता है।
डॉ. उपाध्याय ने कहा कि करीब 18 लाख लोग रोज़गार और शिक्षा की तलाश में राज्य छोड़ चुके हैं। राज्य का कर राजस्व GSDP का केवल 7% है, जबकि हिमाचल और केरल जैसे राज्यों में यह 10% से अधिक है।
उन्होंने भाजपा पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए कहा कि “भाजपा ने 2022 में कर्ज़मुक्त उत्तराखंड का दावा किया था, लेकिन राज्य का ऋण ₹73,751 करोड़ से बढ़कर अब ₹1 लाख करोड़ पहुँच गया है। डबल इंजन सरकार ने विकास नहीं, बल्कि कर्ज़ को दोगुनी गति दी है।
डॉ. उपाध्याय ने कहा कि रजत जयंती के इस अवसर पर राज्य को “नीति, निष्ठा और ईमानदारी” से नई दिशा देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि “राजनीतिक उत्सवों की रोशनी में छिपा यह सच स्वीकार करना होगा कि देवभूमि को ऋणभूमि बनाने में सरकार ने कोई कमी नहीं छोड़ी।

