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भालू आतंक से कांपा चमोली, पूर्व मंत्री भंडारी का फूटा गुस्सा

चमोली। पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी ने चमोली जिले में लगातार बढ़ रहे जंगली जानवरों, खासकर भालुओं के आतंक पर गंभीर चिंता जताई है। मुख्य वन संरक्षक को फोन पर स्थिति से अवगत कराते हुए उन्होंने कहा कि जोशीमठ, दशोली, गोपेश्वर नगर और पोखरी ब्लॉक में लोग हर दिन जानलेवा खतरे का सामना कर रहे हैं। भंडारी ने प्रशासन से सख्त रुख अपनाने की मांग करते हुए स्पष्ट कहा यहाँ आदमी चाहिए या जानवर? स्थिति नियंत्रण में लाने के लिए तुरंत भालू को मारने की अनुमति दी जाए।
भंडारी का कहना है कि ग्रामीणों के मन में दहशत इतनी बढ़ चुकी है कि लोग जंगल जाने से कतराने लगे हैं और रोज़मर्रा की गतिविधियाँ भी प्रभावित हो रही हैं।

इसी बीच पोखरी ब्लॉक में एक दर्दनाक घटना सामने आई, जहाँ पाव गांव की 42 वर्षीय रामेश्वरी देवी पर घास काटते समय भालू ने अचानक हमला कर दिया। बुधवार को जंगल गई महिला देर रात तक घर नहीं लौटी, जिसके बाद परिजन और ग्रामीण चिंतित हो गए। अंधेरा होने के कारण खोज अभियान रोकना पड़ा, लेकिन गुरुवार सुबह खोज फिर शुरू हुई।

ग्रामीणों को महिला जंगल में खून से लथपथ, एक पेड़ के सहारे गिरी हुई मिली। हमले में भालू ने उनके चेहरे और शरीर पर गहरी चोटें पहुंचाई थीं। उन्हें तुरंत पोखरी अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने हालत गंभीर बताकर उन्हें एयरलिफ्ट कर AIIMS ऋषिकेश रेफ़र कर दिया। डॉक्टरों के मुताबिक चोटें अत्यंत गंभीर हैं और महिला जीवन के लिए संघर्ष कर रही है।

वन विभाग ने घटना की पुष्टि करते हुए पूरे क्षेत्र में सतर्कता बढ़ा दी है। विभाग ने जंगल में भालू की गतिविधि को ट्रैक करने, संभावित खतरे वाले इलाकों की पहचान करने और ग्रामीणों को सुरक्षित मार्गों की जानकारी देने के लिए कांबिंग अभियान शुरू किया है।

घटना के बाद पाव गांव, पोखरी बाजार और आसपास के क्षेत्रों में दहशत फैल गई है। ग्रामीणों का कहना है कि पिछले कुछ महीनों से लगातार भालू दिखाई देने की घटनाएँ बढ़ी हैं, लेकिन विभाग की कार्रवाई नाकाफी है। कई लोगों ने कहा कि अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो किसी बड़ी अनहोनी को रोका नहीं जा सकेगा। ग्रामीणों ने प्रशासन से रात में गश्त बढ़ाने, मोबाइल टीम तैनात करने और संवेदनशील क्षेत्रों में चेतावनी बोर्ड लगाने की भी मांग की है।

इस हमले ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ते मानव–वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए  विभाग कितने तैयार हैं।

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