देहरादून। हिमालय की पवित्र वादियों में आयोजित “स्पर्श हिमालय महोत्सव” ने इस बार अध्यात्म, संस्कृति, साहित्य और संगीत का ऐसा समागम प्रस्तुत किया जिसने हर आगंतुक के मन को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम में देश-विदेश से आए संत-महात्माओं, विद्वानों, जनप्रतिनिधियों और कलाकारों की उपस्थिति ने इसे एक भव्य और ऐतिहासिक रूप प्रदान किया।
महोत्सव में जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी जी महाराज की उपस्थिति से पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से आलोकित हो उठा। उन्होंने कहा, “हिमालय केवल पर्वत नहीं, यह भारत की आत्मा और प्रेरणा का स्रोत है। अध्यात्म और प्रकृति का संतुलन ही मानवता का मूल धर्म है।”
पतंजलि योगपीठ के आचार्य बालकृष्ण ने भी कार्यक्रम में शिरकत की और आयुर्वेद व भारतीय संस्कृति के संरक्षण पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हिमालय औषधियों का खजाना ही नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान और परंपरा की जीवनरेखा है।
केंद्रीय मंत्री किरण रिजीजू ने “लेखक गांव” में उपस्थित होकर कहा, “हिमालय हमारी पहचान और हमारी प्रेरणा का प्रतीक है। इसका संरक्षण करना हर भारतीय की जिम्मेदारी है।”
कार्यक्रम की गरिमा तब और बढ़ गई जब मोरिशस के पूर्व राष्ट्रपति ने मंच साझा किया। उन्होंने भारत और मोरिशस के गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रिश्तों को याद करते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच का संबंध आत्मीयता और संस्कृति की डोर से बंधा है।
इस अवसर पर सभी अतिथियों ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और महर्षि धन्वंतरि की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके योगदान को नमन किया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने लेखक गांव की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए सभी मुख्य अतिथियों और आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि यह गांव साहित्य, संस्कृति और हिमालय की भावना को जोड़ने का माध्यम बन रहा है।
वहीं, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने गढ़वाली भाषा में अपने संबोधन से लोगों का मन मोह लिया। उनके भाषण में स्थानीय संस्कृति, लोकभाषा और हिमालय के प्रति गर्व की भावना झलकती रही।
शाम होते-होते माहौल और भी रंगीन हो गया जब मंच पर पहुंचे प्रसिद्ध गायक कैलाश खेर उनके सुरों ने पूरी वादी को भक्ति और उल्लास से भर दिया। “जय जय कारा” जैसे गीतों पर श्रोता झूम उठे और देर तक तालियों की गूंज वातावरण में बनी रही।
लेखक गांव में उमड़े जनसैलाब ने एक बार फिर यह साबित किया कि स्पर्श हिमालय महोत्सव अब केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, अध्यात्म और संगीत का जीवंत उत्सव बन चुका है जहां प्रकृति की गोद में परंपरा, अध्यात्म और कला का मिलन होता है।

